संवैधानिक पद पर हो और ज़ुबान बेलगाम? सुप्रीम कोर्ट ने विजय शाह को लताड़ा

हुसैन अफसर
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मध्य प्रदेश सरकार में जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह को कर्नल सोफ़िया कुरैशी पर दिए गए विवादित बयान के चलते अब सुप्रीम कोर्ट से भी कड़ी फटकार का सामना करना पड़ा है।

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मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मंत्री को फटकार लगाते हुए कहा,

“संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि वह हर शब्द ज़िम्मेदारी से बोले, खासकर तब जब देश गंभीर स्थिति से गुजर रहा हो।”

एफआईआर पर रोक की मांग, पर कोर्ट सख्त

विजय शाह ने हाई कोर्ट द्वारा दर्ज एफआईआर के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उनके वकील ने दलील दी कि हाई कोर्ट अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर चला गया, और सुनवाई से पहले कार्रवाई पर रोक लगनी चाहिए।
लेकिन कोर्ट ने साफ कहा,

“पहले हाई कोर्ट जाइए।”
बाद में कोर्ट सुनवाई को तैयार हुआ लेकिन फटकार देना नहीं भूला।

टिप्पणी पर विवाद, माफी के बावजूद मामला तूल पकड़ा

14 मई को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इस बयान का स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य के DGP को एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था।
विवाद बढ़ने पर विजय शाह ने बयान जारी कर कहा:

“मेरे बयान से अगर किसी समाज की भावनाएं आहत हुई हैं तो मैं शर्मिंदा हूं और माफ़ी मांगता हूं।”

लेकिन सुप्रीम कोर्ट का रुख यह साफ दर्शाता है कि संवैधानिक पदों पर बैठे जनप्रतिनिधियों से जवाबदेही और ज़िम्मेदारी दोनों की अपेक्षा की जाती है।

सियासत और शालीनता दोनों चाहिए

सुप्रीम कोर्ट की यह फटकार सिर्फ विजय शाह को नहीं, बल्कि तमाम राजनीतिक नेताओं के लिए एक संदेश है —

“बयानबाज़ी से पहले सोचिए, क्योंकि लोकतंत्र में हर शब्द का वजन होता है।”

मध्य प्रदेश के जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह की ओर से कर्नल सोफ़िया कुरैशी के खिलाफ की गई टिप्पणी अब एक संवैधानिक संकट का रूप ले चुकी है। हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए उनके खिलाफ एफआईआर के आदेश दिए और अब जब मंत्री सुप्रीम कोर्ट पहुँचे, तो वहां से भी उन्हें राहत नहीं बल्कि फटकार मिली।

पदमपति शर्मा, एडिटोरियल एडवाइजर, Hello UP

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की टिप्पणी – “संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति से जिम्मेदारी की उम्मीद होती है” – न केवल कानूनी चेतावनी थी, बल्कि भारतीय राजनीति की गिरती हुई गरिमा पर एक तीखा संकेत भी।

“कर्नल सोफ़िया कुरैशी भारतीय सेना की पहली महिला अधिकारी हैं जिन्होंने पुरुषों की टुकड़ी का नेतृत्व किया — उनके खिलाफ बोलना न केवल अनुशासनहीनता है, बल्कि देशभक्ति के नाम पर सियासत करने वालों की असल सोच को उजागर करता है। सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाकर संवैधानिक मूल्यों की रक्षा की, लेकिन क्या इस फटकार से राजनीति की भाषा सुधरेगी? शायद नहीं।”

राजनैतिक प्रश्न:

  • क्या मंत्री की माफ़ी अब राजनीतिक नौटंकी बन गई है?

  • हाई कोर्ट के स्वतः संज्ञान लेने की परंपरा क्या भारतीय लोकतंत्र को और मजबूत करेगी?

  • क्या सेना जैसे संस्थानों को राजनीति से बाहर रखना अब भी प्राथमिकता है?

इस पूरे प्रकरण ने स्पष्ट कर दिया है कि आज भी “जिम्मेदारी” और “मर्यादा” शब्द केवल भाषणों तक सीमित हैं। सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी के बाद भी अगर सियासत नहीं सुधरती, तो जनता को ही तय करना होगा कि लोकतंत्र को गिराने वाले शब्द ज्यादा ख़तरनाक हैं या वो चुप्पी जो उन्हें रोक नहीं पाती।

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